उत्तराखंड

कैसे मिले मरीजों को उपचार, जब डॉक्टर ही नहीं पहाड़ चढ़ने को तैयार

देहरादून : प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं पर्वतीय क्षेत्रों में पटरी से उतरी हुई हैं। इसका सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों की कमी होना है। प्रदेश सरकार ने चिकित्सकों की कमी को दूर करने के तमाम दावे किए मगर अभी तक 172 दंत चिकित्सकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के अलावा सरकार इस दिशा में बहुत कुछ नहीं कर पाई है। स्थिति यह है कि अभी भी प्रदेश में चिकित्सकों के कुल सृजित 2715 पदों के सापेक्ष आधे से अधिक रिक्त हैं। हालांकि, दावा किया जा रहा है कि वर्ष अंत तक डॉक्टरों की कमी को काफी हद तक दूर किया जा सकेगा।

राज्य गठन के बाद प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करना सभी सरकारों के लिए चुनौती बनी हुई है। इसके लिए प्रयास तो हुए लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति के अभाव में कोई भी सरकार चिकित्सकों को पहाड़ चढ़ाने में सफल नहीं हो पाई है। इस वर्ष नई सरकार के गठन के बाद प्रदेश में एक बार फिर इस दिशा में कसरत शुरू हुई। चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए सेना के सेवानिवृत्त चिकित्सक लेने की योजना बनाई गई। इसके लिए आवेदन भी मांगे गए। तकरीबन 200 सेवानिवृत्त चिकित्सकों ने इसमें रुचि दिखाई। इस बात को तकरीबन तीन माह हो चुके हैं लेकिन इनके मानदेय पर अभी तक अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है।

अब सरकार ने चिकित्सकों के 712 पदों पर नियुक्ति की कवायद शुरू की है। इसके लिए अभी तक 1350 आवेदन आ चुके हैं। दावा किया जा रहा है कि अगले एक माह में इनकी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से भी तीन साल बाद चिकित्सक मिलने की उम्मीद की जा रही है।

चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. आरपी भट्ट ने बताया कि प्रदेश में चिकित्सकों की कमी को दूर करने के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई है। हाल ही में 172 दंत चिकित्सकों का मसला हल हो चुका है। अब जल्द ही 712 चिकित्सकों की भर्ती के लिए साक्षात्कार शुरू किए जाएंगे। उम्मीद है कि जल्द ही प्रदेश में चिकित्सकों की कमी को दूर किया जा सकेगा।

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