काठमांडू: 2007 के गौर नरसंहार की दोबारा जांच करे सरकार, नेपाल की सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2007 के गौर नरसंहार की जांच के लिए सरकार को अनिवार्य आदेश (मैंडमस) जारी किया। यह नेपाल के राजनीतिक इतिहास की सबसे हिंसक घटनाओं में से एक मानी जाती है। जस्टिस तिल प्रसाद श्रेष्ठ और जस्टिस नित्यानंद पांडे की बेंच ने आदेश जारी करते हुए कहा कि हत्याओं से जुड़ी शिकायतों में जिनके नाम शामिल हैं, उनकी जांच जरूर होनी चाहिए।
कोर्ट के अधिकारियों के मुताबिक, त्रिभुवन साह और अन्य ने चार जून 2023 को रौतहट के जिला पुलिस कार्यालय और जिला सरकारी वकील कार्यालय के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। याचिका में गौर नरसंहार की जांच की मांग की गई थी।
यह 21 मार्च 2007 को रौतहट जिले के गौर स्थित राइस मिल मैदान में हुई थी, जब उस समय के मधेशी जन अधिकार मंच (एमपीआरएफ) और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। मधेशी जन अधिकार मंच के नेता उपेंद्र यादव थे। इस हिंसा में 27 लोग मारे गए थे और करीब सौ लोग घायल हुए थे।
विभिन्न मानवाधिकार संगठनों की जांच रिपोर्ट के मुताबिक, मारे गए ज्यादातर लोग माओवादी समर्थक थे। अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद पुलिस ने उपेंद्र यादव और अन्य 113 आरोपियों के खिलाफ मामले की दोबारा जांच शुरू कर दी है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा तब भड़की जब मधेशी जन अधिकार मंच के समर्थकों ने माओवादियों की ओर से तैयार किया गया मंच तोड़ा। इसके बाद नगरपालिका कार्यालयपास गोली चलने की घटनाएं सामने आईं, जिससे दहशत फैल गई और फिर झड़पें और हत्याएं शुरू हो गईं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि कई पीड़ितों को पकड़ा गया, पीटा गया और मार दिया गया। कई लोगों पर धारदार और भारी हथियारों से हमला किया गया। कुछ को जलाया गया और कई शवों को एक मंदिर के आस पास घुमाया गया और फिर मौके पर फेंक दिया गया।
आयोग ने इस घटना को पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध हिंसा करार दिया और कहा कि इसके लिए मुख्य रूप से मधेशी जन अधिकार मंच के कार्यकर्ता जिम्मेदार थे। इसने यह भी कहा कि जिन लोगों को हिरासत में लिया गया था, उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया। हिरासत में लोगों की हत्या राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अपराध है।