उत्तराखंड

पलायन की पीड़ा थामने वाले डॉ. शेर सिंह पांगती का निधन

देहरादून: प्रसिद्ध इतिहासकार और साहित्यकार शेर सिंह पागती का मंगलवार को़ दून में निधन हो गया है। वह पिछले कुछ समय से बीमार थे। पहाड़ की सभ्यता और संस्कृति को जीवंत रखने में डॉ. पांगती की अहम भूमिका रही है। पहाड़ में पलायन के दर्द को अपनी कलम से बयां कर वह अपनी रचनाओं से हमेशा याद रहेंगे।

पिथौरागढ़ के भैंसखाल में 1937 में जन्मे शेर सिंह पांगती ने मंगलवार को दून स्थित ओम सार्थक अपार्टमेंट, जीएमएस रोड में अंतिम सांस ली। वे 81 वर्ष थे। उनके निधन की खबर से लेखन, साहित्य और इतिहास से जुड़े लोगों में शोक की लहर है। शिक्षक पद से रिटायरमेंट होने के बाद से वह जोहार घाटी और भोटिया जनजाति पर काम कर रहे थे। पीएचडी करने के बाद उन्होंने अपने नाना के घर पर ट्राइबल हेरिटेज म्यूजियम की स्थापना की। यहां कुमाऊं और गढ़वाल के उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाली भोटिया जनजाति की संस्कृति, परम्पराएं और रहन-सहन पर आधारित इतिहास, यंत्र, बर्तन, हस्तशिल्प, पहनावे, खाद्यान्न को सहेजते हुए दुनिया तक पहचान दिलाई है। वह अपने पीछे बेटा मनोज पांगती, पत्‍‌नी और तीन पुत्रियों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए। बीमार होने पर वह कुछ दिन पहले ही दून आए थे। पहाड़ में पलायन की पीड़ा और लोक संस्कृति पर उन्होंने 18 से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं। डा. पांगती के करीबी रहे मुकेश नौटियाल ने बताया कि अंतिम संस्कार बुधवार को हरिद्वार में होगा। सुबह नौ बजे जीएमएस रोड से उनका पार्थिव शरीर हरिद्वार के लिए ले जाया जाएगा।

कुमाऊं की होली एलबम की अंतिम रिकार्डिग की

डा. पांगती के बेटे मनोज ने बताया कि वह पिछले साल से कुमाऊं की होली को एलबम के रूप में सहेज रहे थे। इसकी कुछ दिनों पहले ही उन्होंने रिकार्डिग की है। इसके अलावा पंडित नैन सिंह रावत के बारे में नेशनल स्तर पर इंटरव्यू भी दिए। नैन सिंह के वह करीबी रहे हैं।

कृतित्व का युवा पीढ़ी को मिलेगा लाभ

पलायन को लेकर विचार-विमर्श, हिमगिरि और इनकी उत्पत्यकाओं में यायावरी करने वाला प्रकृति का कुशल चितेरा अब प्रत्यक्ष तो नजर नहीं आएगा, परंतु उसके कृतित्व सीमांत से नाता रखने वाले युवाओं को दिशा और दशा देंगे। शौका समाज की धरोहरों को सहेज कर रखना, कलम के माध्यम से युवा पीढ़ी को उनकी संस्कृति और रहन-सहन की याद दिलाकर उन्हें गांवों से पलायन नहीं करने देने का संदेश हर किसी के मन को छू लेगा।

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नाटकों के मंचन से संदेश

डॉ. शेर सिंह पांगती द्वारा लिखे गए नाटक दादु है बेर भौजि होस्यार (भाई से भाभी होशियार) और बाल सदेऊ का कई बार मंचन हो चुका है। इस नाटक की सभी ने सराहना की। यह नाटक वर्तमान समाज का दर्पण रहा।

यायावर बनकर नापा हिमालय

डॉ. शेर सिंह पांगती को घूमने का शौक था। पूर्व में अरुणाचल से लेकर पश्चिम में द्वारिका, लेह लद्दाख से कन्या कुमारी तक के सभी दर्शनीय, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का उन्होंने भ्रमण किया था। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए न्यूजीलैंड तक पहुंचे थे। इसके अलावा ट्रेल पास किया, नेपाल के सोलुंग खेम्बों और तिब्बत तक की यात्रा की है।

डॉ. पांगती के कृतित्व एवं रचनाएं

जोहार के स्वर, मध्य हिमालय की भोटिया जनजाति, जोहार के शौका। नाटक श्रवण कुमार, सूत पुत्र कर्ण, एकलव्य, नारद मोह, परशुराम प्रतिज्ञा, लवकुश, राजा परीक्षित, किरतार्जुन, भीष्म प्रतिज्ञा, कुमाऊनी नाटक-छुरमल, गोलू देवता, बबुरखान, कुमाऊंनी गीत नाटक दादु है बेर भौजि होस्यार, बाल सदेऊ, यात्रा संस्मरण मिलम से माणा तक, ट्रेल पास अभियान 1994, मेरी कैलास मानसरोवर यात्रा, आदि कई पुस्तकें लिखी हैं।

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