उत्तराखंड

छठ की छटा में डूबा दून, खरना की परंपरा निभा रही महिलाएं

देहरादून : उल्लास से भरे विराट भक्ति भाव वाले महापर्व छठ पूजा का नहाय-खाय के साथ शुभारंभ हो गया है। परिवार की श्रेष्ठ महिलाओं और पुरुषों ने व्रत धारण कर छठी मैया व सूर्य देव की पूजा की। वहीं, छठ पर्व के लिए पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों की खरीदारी के लिए बाजार में काफी भीड़ रही। वहीं छठ महापर्व के दूसरे दिन महिलाएं खरना व्रत की परंपरा निभा रही हैं।

राजधानी देहरादून में भी बिहारी समुदाय की महिलाओं ने खरना व्रत रखा है। छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना व्रत की परंपरा निभाई जाती है। महिलाएं आज के दिन उपवास रखती हैं और फिर शाम को सूर्यदेव को खीर-पूड़ी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाती हैं। इसके बाद महिलाएं सभी को प्रसाद बांटती हैं। इस दिन प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी नहीं डाली जाती है। साथ ही पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

नहाय खाय के साथ होती है छठ की शुरुआत

छठ पूजा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड का प्रमुख त्योहार है। द्रोणनगरी में भी बड़ी तादाद में इन राज्यों के लोग रहते हैं तो यहां भी छठ पूजा के रंग बिखरने लगे हैं। नहाय खाय के साथ इस महापर्व की शुरुआत भी हो चुकी है। इस पर्व में मन और तन की शुद्धि का बड़ा महत्व है। इसलिए नहाय-खाय पर व्रतियों ने सूर्योदय से पूर्व उठकर पूरे घर की साफ-सफाई की और फिर स्नान किया। इसके बाद महिलाओं ने सूर्य देव और छठी माता की उपासना की और लौकी-भात का प्रसाद ग्रहण किया।

बड़े-छोटे का भेद नहीं, सब एक समान 

बिहारी महासभा उत्तराखंड के अध्यक्ष सतेंद्र सिंह ने बताया कि इस पर्व में वर्ग और जाति का कोई भेद नहीं होता। ब्राह्मण भी शूद्र के पैर छूता है और हरसंभव मदद करता है। सभी मिलजुलकर इस महापर्व को मनाते हैं।

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