उत्तराखंड

कारगिल विजय दिवसः पिता की शहादत से हौसला पाकर बेटा बना प्रहरी

देहरादून : यही वह जज्बा है जिससे देश की सरहदें सलामत हैं। पहले पिता ने प्राणों की आहूति दी और अब बेटा देश का प्रहरी बन सरहद पर सीना ताने खड़ा है। ठीक से दुनिया भी नहीं देखी थी, जब पिता का साया सिर से उठ गया, मगर कदम लड़खड़ाए नहीं। निगाह लक्ष्य पर थी और मन में ख्वाहिश पिता के नक्शे कदम पर चलने की। शहादत ने हौसलों को हवा दी और चल पड़े एक नई इबारत लिखने।

यह कारगिल शहीदों के परिजनों का देश सेवा का जज्बा ही है कि वे अपने बच्चों को भी सेना में भेज रहे हैं। ऐसा ही एक परिवार है देहरादून के बालावाला निवासी शहीद हीरा सिंह का। लांसनायक हीरा सिंह की पत्नी गंगी देवी ने बताया कि उनके पति नागा रेजीमेंट में तैनात थे। वे 30 मई 1999 को कारगिल में शहीद हो गए। तब लगा कि जैसे सब खत्म हो गया है, लेकिन कदम रुके नहीं। चमोली जनपद के देवाल गांव का यह परिवार वर्ष 2000 में बालावाला में आकर बस गया।

शहीद हीरा सिंह का बड़ा बेटा वीरेंद्र नया गांव पेलियो में गैस एजेंसी चला रहा है। मझला बेटा सुरेंद्र भी उनका हाथ बंटाता है। जबकि छोटे बेटे धीरेंद्र ने पिता की ही तरह फौज में अपना कॅरियर चुना। धीरेंद्र ने 12वीं की परीक्षा का बस एक ही पेपर दिया था। तभी सेना की भर्ती रैली आयोजित हुई।

एक तरफ परीक्षा थी और दूसरी तरफ फौजी जज्बा। धीरेंद्र ने पिता की ही तरह देश सेवा को अपना फर्ज समझते हुए फौज को चुना। यह नौजवान कुमाऊं रेजीमेंट का हिस्सा बन गया। फौजी वर्दी पहने वक्फा गुजर चुका है। वह उसी सरहद पर तैनात रहे, जहां कभी पिता ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। तकरीबन तीन साल तक कारगिल क्षेत्र में ड्यूटी की। जिस मोर्चे पर पिता ने जान दी, वहीं अब बेटा जी जान से सरहद की हिफाजत की।

मां गंगी देवी कहती हैं कि उनकी ख्वाहिश भी यही थी। वह चाहती थी कि उनका एक बेटा फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करे। धीरेंद्र अभी जम्मू में तैनात हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button