उत्तर प्रदेश

खरीफ की प्रमुख फसलों के शत-प्रतिशत बीजशोधन हेतु कृषक भाइयों को सुझाव

लखनऊ: प्रदेश में फसलों को प्रतिवर्ष क्षति का लगभग 26 प्रतिशत क्षति रोगों द्वारा होती है। रोगों से होने वाली क्षति कभी-कभी महामारी का रुप भी ले लेती है और इनके प्रकोप से शत-प्रतिशत तक फसल नष्ट होनं की संभावना बनी रहती है। अतः बुवाई से पूर्व सभी फसलों में बीजशोधन का कार्य शत-प्रतिशत कराया  जाना नितान्त आवश्यक है। फसलों को बीज जनित बीमारियों से बचाने हेतु बीजशोधन का उतना ही महत्व है जितना कि नवजात शिशु का टीकाकरण। जिस प्रकार विभिन्न रोगो से बचाव हेतु बच्चों/नवजात शिशुओं का टीकाकरण किया जाता है, जिससे उनके अन्दर बीमारियों से लड़ने के  लिए बीजशोधन कराना आवश्यक है, बीजशोधन से फसलों मे बीज जनित रोगों से लड़ने हेतु प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। बीजशोधन प्रयोग किए गए रसायनों/बायोपेस्टीसाइट को बुवाई के पूर्व सूखा अथवा कभी-कभी संस्तुतियों के अनुसार घोल/स्लरी बना कर मिलाया जाता है, जिससे इनकी एक परत बीजों की बाहरी सतह पर बन जाती है जो बीज पर/बीज में पाए जाने वाले शाकाणुओं/जीवाणुओं को अनुकूल परिस्थितियों में नष्ट कर देती है।

खरीफ की प्रमुख फसलों यथा-धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, उर्द, अरहर, मूगफली एवं तिल में बीजशोधन कार्य हेतु संस्तुतियों के अनुसार प्रमुखतः-थीरम 75 प्रतिशत, डब्लू.एस. (2.5 ग्राम/किग्रा0 बीज), कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. (2 ग्राम/किग्रा बीज),  स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत ़टेटाªसाइक्लिन हाइड्रक्लोराइड 10 प्रतिशत (4 ग्राम/25 किग्रा बीज), कार्बाक्सिन 37.58 प्रतिशत़थिरम37.5 प्रतिशत डी.एस. (2 ग्राम/किग्रा बीज), टेबुकोनाजोल 2 प्रतिशत डी.एस ( 20 ग्राम/किग्रा बीज), मेटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू.एस. (6 ग्राम/किग्रा बीज) एवं ट्राइकोडरमा (4 ग्राम/किग्रा बीज) आदि रसायनों को प्रयोग किया जाता है। बीजशोधन से बीजजनित रोगों यथा-धान में जीवणु झुलसा, कण्डुआ, शीथ ब्लाइट आदि रोग मक्का, ज्वार बाजरा में तुलासिता रोग आदि, मूंगफली में क्राउन राॅट, टिक्का रोग आदि, सोयाबीन में बीज सड़न, कालर राॅट आदि रोग, तिल में फाइटोफ्थोरा झुलसा, तना सड़न रोग, अरहर में बीज सड़न, उकठा रोग, उर्द एवं मूंग में पत्ती धब्बा रोगों से बचाव किया जा सकता है। खड़ी फसलों में उपरोक्त रोगों का कोई सफल इलाज नहीं है। बीज जनित बीमारियों से फसलों का बचाव मात्र बीजशोधन द्वारा ही किया जा सकता  है।

कृषक बंधु अपनी फसलों की बुवाई/नर्सरी से पूर्व बीजशोधन/नर्सरी शोधन अवश्य करें ताकि बीजजनित रोगों से होने वाली क्षतियों से बचा जा सके एवं अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके। इस प्रकार हम सरकार का मंशा के अनुरुप कृषकों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सकते है।

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