उत्तराखंड

माओवाद से अलग दंतेवाड़ा की पहचान सामने लाता: दंतक्षेत्र

दंतेवाड़ा भय का पर्याय है। लोक-धारणा है कि नक्सलवाद प्रभावित होने के कारण इस क्षेत्र में जन-जीवन सामान्य नहीं है। बस्तर अंचल में माओवाद की उपस्थिति के मूल कारणों को कम ही जानते हैं,  साथ ही यह भी कि समृद्ध कला, संस्कृति, इतिहास आदि यहां की वास्तविक पहचान है। छत्तीसगढ राज्य के बस्तर संभाग में स्थित दंतेवाड़ा जिला और उसके अतीत से ले कर वर्तमान तक को बहुत ही रोचक और विचारोत्तेजक तरीके से लेखक राजीव रंजन प्रसाद की पुस्तक “दंतक्षेत्र” सामने लाती है। मुखपृष्ठ में प्रकाशित वाक्यांश “दंतेवाड़ा:  थोडा जाना थोडा अनजाना” पुस्तक की विषयवस्तु की परिधि को स्पष्ट करता है। पुस्तक इसमें प्रस्तुत विमर्श के आधार पर चार मुख्य भाग में विभाजित कर लिखी गयी है – ‘हरे केनवास पर लाल रंग’, ‘अतीत के काले सफेद पन्ने’, ‘जीवन जो बहती धारा है’ तथा ‘नक्सल मुखौटा हटा कर जो देखा’। सभी विषय विमर्ष के साथ प्रस्तुत किये गये हैं, पुस्तक पढ कर प्रतीत होता है कि लेखक ने दंतेवाड़ा का स्वर बन कर उसकी वस्तुस्थिति और वेदना को सामने लाने का महति प्रयास किया है।

दंतक्षेत्र  असाधारण तथा श्रमसाध्य शोध से एकत्रित की गयी दुर्लभ जानकारियों का कोलाज है। दंतेवाड़ा का नामकरण से आरम्भ कर यहां के भूगोल ने कैसे माओवाद को भीतर पनपने के लिये खाद-पानी प्रदान किया, वे कौन से मसले थे जिन्होंने इस अंचल को अशांत किया और अशांत ही बनाये रखा, मालिक मकबूजा की लूट, बैलाडिला लौह अयस्क के कारण होने वाले सामाजिक-आर्थिक बदलाव, उद्योगों की घोषणाओं और उनके उजडने की व्यथा कथा को लेखन ने अतीत के उदाहरणों और वर्तमान के विश्लेष्णों के साथ दंतक्षेत्र में प्रस्तुत किया है। पुस्तक में इस जिले के प्रागैतिहास से ले कर वर्तमान तक की स-विस्तार विवेचना है। यहां रहने वाली जनजातियों, उनकी जीवन शैली, उनकी कला-संस्कृति परम्पराओं आदि का भी बहुत अच्छी तरह प्रस्तुतिकरण इस पुस्तक में किया गया है। यह पुस्तक माओवाद से प्रभावित दंतेवाड़ा को ले कर देश-विदेश में फैले और फैलाये गये सभी प्रकार के सत्यों, असत्यों, वास्तविकताओं और प्रोपागेंडा की खरी खरी पडताल है। पुस्तक व्यवस्था की खामियों से ले कर बौद्धिक षडयंत्रों पर से पर्दा उठाती है। दंतक्षेत्र के लेखक राजीव रंजन प्रसाद स्वयं दंतेवाडा के रहने वाले हैं इसीलिये पुस्तक में उनकी सोच या विचारधारा नहीं बल्कि यहां की मिट्टी की खुश्बू है। दो व्यवस्था (सरकार तथा नक्सल) के बीच पिस रहे लोगों के मनोभावों और अपेक्षाओं को पुस्तक के माध्यम से सामने लाने में लेखक को सफलता हासिल हुई है। पुस्तक की भाषा में प्रवाह है और लिखने की शैली में रोचकता है।

पुस्तक: दंतक्षेत्र

लेखक: राजीव रंजन प्रसाद

पृष्ठ – 456

मूल्य: रुपये 499/-

प्रकाशक: यश पब्लिकेशंस, नवीन शहादरा, नई दिल्ली

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