धर्म/अध्यात्म

सावन सोमवार व्रत के दिन शिवलिंग पर चढ़ाएं ये चीजें

वैदिक पंचांग के अनुसार इस सावन की शुरुआत 11 जुलाई से हुई है। इस माह महादेव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करने का खास महत्व है। साथ ही विशेष चीजों के द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इससे शिव जी प्रसन्न होते हैं और साधक की किस्मत चमकती है।

सनातन धर्म में सावन के महीने को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह भक्त शिव जी की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। सावन में पड़ने वाले सोमवार का भी किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से विवाह में आ रही बाधा से छुटकारा मिलता है। साथ ही मनचाहा वर मिलता है। सावन का पहला सोमवार व्रत 14 जुलाई को है।

अगर आप सावन सोमवार व्रत के दिन भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो सुबह स्नान करने के बाद महादेव की पूजा-अर्चना करें और विशेष चीजें अर्पित करें। इससे साधक की सभी मुरादें पूरी होती हैं और महादेव की कृपा से बिगड़े काम पूरे होते हैं।

सावन सोमवार के दिन शिवलिंग पर विधिपूर्वक गन्ने का रस चढ़ाना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिगं का गन्ने का रस अभिषेक करने से धन लाभ के योग बनते हैं और दरिद्रता की समस्या से छुटकारा मिलता है।

अगर आप महादेव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो सावन सोमवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें। साथ ही शिवलिंग पर केसर जरूर चढ़ाएं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस उपाय को करने से जातक के मान-सम्मान में भी बढ़ोतरी होती है और महादेव प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मुरादें पूरी होती हैं।

अगर आप लंबे समय से जीवन में दुख और संकट का सामना कर रहे हैं, तो इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए सावन सोमवार का दिन शुभ माना जाता है। इस दिन पूजा के दौरान शिवलिंग पर 21 बेलपत्र अर्पित करें। इस उपाय को करने से साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी मिलता है। साथ ही बिगड़े काम पूरे होते हैं।

शिव मंत्र (Shiv Mantra)

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

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