उत्तराखंड

उत्तराखंड: कॉर्बेट के जंगलों में अब तक 40 हाथियों की खत्म हो चुकी जिंदगी

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मानव वन्यजीव संघर्ष के साथ ही वन्य जीवों के बीच भी आपसी संघर्ष बढ़ा है। बाघों से ज्यादा आपसी संघर्ष में यहां गजराज अपनी जान गंवा रहे हैं। प्रजनन काल में मादा हाथी का साथ पाने को लेकर वर्चस्व की जंग में हाथियों की जान जा रही है। संघर्ष में वन्य जीवों की मौत से पार्क प्रशासन व वन्य जीव प्रेमी चिंतित हैं।

राज्य बनने के बाद अब तक अलग-अलग रेंजों में हुए आपसी संघर्ष में 40 हाथी अपनी जान गंवा चुके हैं। बाघों के बीच हुए संघर्ष में अब तक 37 बाघों की जान गई है। संघर्ष का मुख्य कारण मादा हाथी के लिए गजराज का जान लेने की हद तक आक्रामक हो जाना है। हार्मोनल बदलाव के चलते ऐसा होता है जिस कारण हाथियों की जान जा रही है।

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के 1288 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में बड़ी संख्या में हाथी, बाघ समेत अन्य वन्य जीव मौजूद हैं। वर्ष 2022 में हुई बाघों की गणना में सीटीआर में 260 बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई थी। वहीं सीटीआर की शोध रेंज से मिले आंकड़ों के अनुसार, सीटीआर में 1101 हाथी मौजूद हैं। दूसरी ओर सीटीआर में राज्य बनने के बाद अब तक कुल 106 हाथियों और 80 बाघों की प्राकृतिक मौत हुई है।

जानलेवा जंग की परिणति मौत के रूप में

वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार ने बताया कि बाघों में इलाकों को लेकर आपसी संघर्ष की घटनाएं होती हैं। जबकि हाथियों में मीटिंग (प्रजनन) सीजन के बीच संघर्ष का मुख्य कारण नर हाथियों में हार्मोनल बदलाव से उनका आक्रामक हो जाना है। वे मादा हाथियों तक पहुंचने के लिए आपस में जानलेवा जंग पर आमादा हो जाते हैं। इसी संघर्ष में हाथियों की मौत हो जाती है।

सीटीआर में हाथी और बाघ बड़ी संख्या में मौजूद हैं। बाघ और हाथी के बीच आपसी संघर्ष के मामले आते हैं। आपसी संघर्ष में मारे गए वन्यजीवों के शव को पोस्टमार्टम के बाद वन विभाग की निगरानी में नष्ट किया जाता है।

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