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ताजमहल से भी पहले बना था ‘बेबी ताज’, बेहद दिलचस्प है इस मकबरे की कहानी

नूरजहां, जिनका असली नाम ‘मेहरून्निसा’ था, एक समय ईरान से आए एक शरणार्थी परिवार की बेटी थीं। उनके माता-पिता, गयासुद्दीन बेग और अस्मत बेगम, कठिन परिस्थितियों में अपना वतन छोड़कर हिंदुस्तान आ गए थे। रास्ते में अस्मत बेगम गर्भवती थीं, मगर उन्हें यह अंदाजा भी नहीं था कि उनकी संतान एक दिन हिंदुस्तान की सबसे प्रभावशाली महिला बनेगी।

मेहरून्निसा की बुद्धिमानी और समझदारी ने उन्हें सम्राट जहांगीर के दरबार तक पहुंचाया। समय के साथ वे नूरजहां बनीं, ‘जहां की रोशनी’, लेकिन उनकी शक्ति केवल सौंदर्य या आकर्षण से नहीं, बल्कि उनकी बुद्धि और निर्णय क्षमता से आई थी।

पिता के लिए बेटी का प्यार
जब नूरजहां के पिता, गयासुद्दीन बेग (जिन्हें जहांगीर ने “इतमाद-उद-दौला” यानी ‘साम्राज्य का स्तंभ’ की उपाधि दी थी) और माता अस्मत बेगम का निधन हुआ, तो नूरजहां ने अपने निजी धन से उनके लिए एक भव्य मकबरा बनवाया। 1622 में शुरू होकर लगभग छह साल में तैयार हुआ यह स्मारक 162 में पूर्ण हुआ।

यह मकबरा एक दीवार से घिरे बगीचे में स्थित है, जिसे फारसी ‘चारबाग’ शैली में बनाया गया- जहां पानी की नहरें चार भागों में बंटी होती हैं, जो स्वर्ग के प्रतीक मानी जाती हैं।

पहली बार हुआ सफेद संगमरमर का इस्तेमाल
इतमाद-उद-दौला का मकबरा अक्सर ‘बेबी ताज’ कहलाता है, लेकिन यह नाम उसके सौंदर्य के साथ न्याय नहीं करता। यह स्मारक आकार में छोटा जरूर है, पर इसकी सुंदरता ताजमहल से कम नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि पहली बार मुगल स्थापत्य में संपूर्ण सफेद संगमरमर का उपयोग इसी मकबरे में हुआ था। इससे पहले लाल बलुआ पत्थर मुगल इमारतों की पहचान था। नूरजहां ने संगमरमर में बारीक रंगीन पत्थरों की जड़ाई (पिएत्रा ड्यूरा) करवा कर इमारत को एक ‘ज्वेल बॉक्स’ जैसा रूप दिया और यही शैली बाद में शाहजहां ने ताजमहल में अपनाई।

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