अमेरिकी टैरिफ वॉर से कैसे बचेगा भारत…

अमेरिका ने भारतीय आयात के कुछ सेक्टरों पर टैरिफ और जुर्माना लागू कर दिया है। इससे मैन्युफैक्चरिंग और हैंडीक्राफ्ट सेक्टर पर सीधे असर पड़ना शुरू हो गया है। निर्यात पर असर पड़ने से तात्कालिक रूप से इन सेक्टर की नौकरियों पर भी असर पड़ सकता है। निर्यात इकाइयों के संगठन ने टैरिफ के कारण कुछ सेक्टर पर बड़ा असर पड़ने की आशंका जताई है और सरकार से तुरंत दखल देने की मांग की है, लेकिन आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत इन झटकों से आसानी से निपट लेगा। भारत के पास ऐसे पर्याप्त विकल्प मौजूद हैं, जिन्हें अपनाकर इस आपदा को अवसर में बदला जा सकता है। संभवतः यही कारण है कि ट्रंप की टेढ़ी नजर के बाद भी भारत अमेरिका के सामने नहीं झुका।
भारत की एक बड़ी शक्ति उसका 140 करोड़ की आबादी वाला आंतरिक बाजार है। जिस मैन्युफैक्चरिंग और हैंडीक्राफ्ट सेक्टर पर टैरिफ वॉर का सबसे अधिक असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है, वह आज भी अपनी कुल घरेलू मांग को पूरा करने की स्थिति में नहीं है। देश के अंदर इन वस्तुओं की सप्लाई चेन अभी भी कमजोर है और मांग-आपूर्ति में बड़ा अंतर है। इसी स्थिति का लाभ उठाते हुए चीनी कंपनियां ऑफिस-घरों के लिए टेबल-कुर्सी से लेकर हर एक वस्तुएं बना रही हैं। कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत के आंतरिक बाजार में अपनी दखल बढ़ाने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रही हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि केंद्र और राज्य सरकारें एक समग्र रणनीति अपनाएं तो घरेलू बाजार की आवश्यकताओं को पूरा कर टैरिफ से संभावित घाटे को पाटा जा सकता है।
ट्रंप ने टैरिफ के जरिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था के घाटे को कम करने की रणनीति अपनाई है। इसीलिए वे अमेरिकी उद्योगपतियों से अमेरिका में निवेश करने और देश के अंदर ही निर्माण करने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन टैरिफ के कारण अमेरिका के लोगों की बचत प्रभावित होगी। वे महंगाई की मार झेलेंगे। इसे ध्यान में रखते हुए ही ट्रंप ने रणनीतिक तरीके से मोबाइल और दवाइयों के बाजार को इससे बाहर रखने का रखने का निर्णय किया है। यदि ये क्षेत्र भी टैरिफ के असर में आते तो इससे अमेरिका को बड़ा असर पड़ता। लेकिन देर-सबेर टेक्सटाइल और अन्य क्षेत्रों का असर भी अमेरिकी उपभोक्ताओं को झेलना पड़ेगा। भारतीय बाजार को सीमित करने के कारण चीन और अन्य देशों के व्यापारी अपना बाजार मुनाफा बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं जिसका अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान होगा।