धर्म/अध्यात्म

केवल ध्यान के माध्यम से समझे जा सकते हैं शिव

श्रवण से श्रावण शब्द बना है। भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी नौ प्रकार की भक्ति का उपदेश दिया जिसे सुनने से शिव की कृपा प्राप्त होती है। इन भक्तियों में संकीर्तन कथा सुनना निर्भीक भक्ति दास्य भाव पूजन सत्य वाचन ईश्वर के संकल्प को मानना और सब कुछ ईश्वर को अर्पित करना शामिल हैं।

स्वामी मैथिलीशरण (संस्थापक अध्यक्ष, श्रीरामकिंकर विचार मिशन, ऋषिकेश)। श्रवण से श्रावण शब्द बना है। भगवान शिव ने माता पार्वती को शिव पुराण की रुद्रसंहिता में अपनी नौ प्रकार की भक्ति का उपदेश दिया। माता ने इसे श्रद्धा भाव से सुना।

यह उपदेश सुनने और मनन करने से साधक को शिव की कृपा और भक्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है। पहली भक्ति है मुख से भगवान का संकीर्तन करना, दूसरी भक्ति है कान से भगवान का संकीर्तन एवं कथा को सुनना, तीसरी भक्ति है निर्भीक एवं शांत रहकर भक्ति करना, चौथी भक्ति है अपने आप को प्रभु का दास जानकर उनकी मानसिक सेवा करना। यह दास्य भक्ति है।

पांचवीं भक्ति है सामर्थ्य के अनुसार संसाधनों से पंचोपचार या षोडषोपचार पूजन करना। छठी भक्ति है मन से भावपूर्ण होकर, वचन से कल्याणकारी सत्य का वाचन करते हुए और श्रेष्ठ कर्म करते हुए उपासना करना।

भक्ति है ईश्वर
सातवीं भक्ति है ईश्वर मेरे लिए जो कर रहा है, वह सब मेरे लिए उसका मांगलिक संकल्प है। आठवीं भक्ति है जो भी प्राप्त है, उसको ईश्वर की कृपा मानकर मन से भगवान को अर्पित कर देना। श्रवण में श्रुति शब्द मूल है। वेद स्वरूप एवं श्रुति स्वरूप भगवान शिव श्रावण में जल अर्पित करने से भक्तों पर सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं और जिसे जो चाहिए, उसे वह सब प्रदान करते हैं। शिव विश्वरूप हैं, जिसका अर्थ है कि संपूर्ण ब्रह्मांड उनका रूप है और फिर भी वे निराकार हैं।

शिव की न कोई शुरुआत है, न कोई अंत है। आप ब्रह्मांड की आदि ध्वनि ओम की गहराई में जाकर उन्हें जान सकते हैं। आप शिव को केवल ध्यान के माध्यम से समझ सकते हैं।

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