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 ग्रेट बनते-बनते रह गई अनुपम खेर की फिल्म, भांजी की लाइफ से इंस्पायर है कहानी

आई एम डिफरेंट पर नो लेस यानी मैं अलग हूं कमतर नहीं। फिल्‍म तन्‍वी द ग्रेट में तन्‍वी (शुभांगी दत्‍त) द्वारा बोला गया यह संवाद उसकी स्थिति बताने के लिए काफी है जो ऑटिज्‍म से पीडि़त है। ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति का दिमाग दूसरों से अलग तरीके से काम करता है, जिससे सामाजिक संपर्क, संवाद करने और कुछ खास तरह के व्यवहारों में कठिनाई हो सकती है।

फिल्‍म के निर्माता, लेखक और निर्देशक अनुपम खेर ने अपनी भांजी से प्रेरित होकर यह फिल्‍म बनाई है। तन्‍वी के जरिए वह ऑटिज्‍म से पीडित को कमतर न समझने के साथ प्‍यार और सम्‍मान से पेश आने का संदेश सहजता से दे जाते हैं।

क्या है ‘तन्वी द ग्रेट’ की कहानी?
कहानी यूं हैं कि दिल्‍ली में रहने वाली मां विद्या रैना (पल्‍लवी जोशी) अपनी बेटी तन्‍वी (शुभांगी दत्‍त) के साथ उत्तराखंड के लैंसडाउन ( Lansdowne)आती है जहां उसके ससुर और पूर्व सैन्‍य अधिकारी कर्नल प्रताप रैना (अनुपम खेर) रहते हैं। सेना में सेवारत रहे तन्‍वी के पिता कैप्‍टन समर रैना (करण टैकर) का निधन हो चुका है। ऑटिज्‍म विशेषज्ञ विद्या को न्‍यूयार्क में कार्यशाला में हिस्‍सा लेने के लिए जाना है। वह तन्‍वी को कर्नल प्रताप रैना के पास छोड़ती है ताकि उस दौरान वह संगीत सीख सके। तन्‍वी का व्‍यवहार आम युवाओं जैसा नहीं होता है। तेज आवाज में बात करने पर वह परेशान हो जाती है।

कर्नल रैन उसे असामान्‍य मानते हैं। दोनों में शुरुआत में बनती नहीं है। एक दिन तन्‍वी अपने पापा का वीडियो देखती है जिसमें वह सियाचिन पर तिरंगे को सलामी देने की ख्‍वाहिश रखते हैं। तन्‍वी सेना में जाना तय करती है। इस बीच उसकी मुलाकात मेजर श्रीनिवासन (अरविंद स्‍वामी) से होती है। तन्‍वी के पिता का अतीत श्रीनिवासन से जुड़ा होता है। ट्रेनिंग एकेडमी चलाने वाले श्रीनिवासन उसे एसएसबी की ट्रेनिंग देने को राजी हो जाते हैं। प्रताप रैना जानते हैं कि तन्‍वी को सेना में नहीं लिया जा सकता। उसके बावजूद उसके सपनों में उसका साथ देने को राजी होते हैं।

अच्छी कहानी में मेकर्स से हुई छोटी गलतियां
अनुपम खेर और अभिषेक दीक्षित लिखित यह कहानी सेना की पृष्‍ठभूमि में ऑटिज्‍म से पीडि़त लड़की की सोच और व्‍यवहार को दर्शाती है। फिल्‍म ओम जय जगदीश की रिलीज के करीब 23 साल बाद अनुपम खेर ने तन्‍वी द ग्रेट का निर्देशन किया है। वह शुरुआत में तन्‍वी की मासूमियत, सादगी और निश्छलता से परिचित कराते हैं। उसकी दुनिया में आसानी से ले जाते हैं। ऑटिज्‍म पीडित लोगों से परिचित कराने का उनका यह प्रयास सराहनीय है।

हालांकि, इंटरवल के बाद फिल्‍म बहुत खींची लगती है। एसएसबी उत्तीर्ण करने के लिए आवश्यक कठिन प्रक्रिया को दिखाने के बजाय, फिल्म तन्वी की तैयारी को केवल अभ्यास और एक रोमांचकारी वीरतापूर्ण कार्य तक सीमित कर देती है। ऐसे में नायिका का एसएसबी उत्‍तीर्ण कर साक्षात्कार चरण तक पहुंचने की प्रक्रिया अविश्वसनीय लगती है।

फिल्‍म वास्तविकता को दरकिनार करते हुए एक ऐसा शॉर्टकट चुनती है जो तन्वी की दृढ़ता और उसके संघर्ष की प्रामाणिकता को कमजोर कर देता है। प्रशिक्षण के दौरान तन्‍वी के सभी सहपाठी का उसके साथ सहज होना भी अवास्तविक लगता है। इसी तरह संगीत शिक्षक रजा साहब (बमन ईरानी) का ट्रैक कमजोर है। तन्वी का शास्त्रीय संगीत और भजनों के प्रति रुझान उसकी आंतरिक दुनिया की एक सशक्त झलक हो सकता था, लेकिन वहां पर यह गहराई से नहीं जाती।

फिल्‍म का क्‍लाइमेक्‍स भी तार्किक नहीं बन पाया है। फिल्‍म की अवधि दो घंटे 39 मिनट भी ज्‍यादा है। उसे चुस्‍त संपादन से कम किया जा सकता था। तन्‍वी गानों के शब्‍दों को अपने हिसाब से पिरोती है। उसे गीतकार कौसर मुनीर ने बखूबी शब्‍दों में पिरोने की कोशिश की है। इसमें संगीतकार एमएम किरवाणी का उन्‍हें पूरा सहयोग मिला है। ओह मेरे मन मोहना इस कड़ी में शानदार प्रयास है। सिनेमेटोग्राफर केईको नाकाहरा ने उत्तराखंड की खूबसूरती को शानदार तरीके से कैमरे में कैद किया है।

अनुपम खेर की एक्टिंग क्लास से निकला एक और हीरा
फिल्‍म से शुंभागी दत्‍त अभिनय में कदम रख रही हैं। वह अनुपम खेर द्वारा संचालित एक्टिंग इंस्टीट्यूट एक्‍टर प्रीपेयर्स की छात्रा है। उन्‍होंने ऑटिज्‍म से पीड़ित लड़की की मनोदशा, मनोभावों और मासूमियत को बहुत सहजता से आत्‍मसात किया है। उनका अभिनय शानदार है। वहीं उनके दादा की भूमिका में अनुपम खेर ने हर भाव को शिद्दत से जीया है। सहयोगी भूमिका में आए कलाकार पल्‍लवी जोशी, जैकी श्रॉफ, बमन ईरानी अपनी भ‍ूमिका के साथ न्‍याय किया है। अरविंद स्‍वामी अपनी भूमिका में प्रभाव छोड़ते हैं।

तन्‍वी द ग्रेट संवेदनशील विषय पर बनी फिल्‍म है। इन विषयों पर आधारित कहानियों को बहुत सावधानी और प्रामाणिकता से बनाने की जरूरत होती है। अगर उन पहलुओं पर ध्‍यान दिया जाता तो यह ग्रेट फिल्‍म बन सकती थी।

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