पर्यटन

Rajasthan का वो किला, जहां मौजूद है दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार

कल्पना कीजिए एक ऐसी दीवार, जो इतनी विशाल हो कि मीलों तक फैली हो, जिस पर एक साथ कई घोड़े दौड़ सकें… एक ऐसी दीवार, जिसने सदियों तक एक पूरे राज्य को दुश्मनों से बचाया हो!

आज इस आर्टिकल में हम बात कर रहे हैं राजस्थान का गौरव कहलाने वाले Kumbhalgarh Fort की, जिसे देखकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे! जी हां, यह सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि शौर्य, कला और इतिहास का जीता-जागता सबूत है, जो आज भी अरावली की पहाड़ियों में शान से खड़ा है।

यहां मौजूद है भारत की ‘ग्रेट वॉल’
उदयपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में स्थित यह किला घने जंगलों से घिरा हुआ है। इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में महाराणा कुंभा ने करवाया था। उन्होंने इस किले को इस तरह से बनवाया था कि कोई भी बाहरी आक्रमणकारी आसानी से इसे भेद न सके। यही कारण है कि कुंभलगढ़ की सुरक्षा दीवारें इतनी मजबूत और विस्तृत बनाई गईं कि इसे ‘भारत की ग्रेट वॉल’ कहा जाने लगा।

इस किले की दीवार लगभग 36 किलोमीटर लंबी है, जो इसे चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार बनाती है (World’s Second Longest Wall)। यह इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घोड़े दौड़ सकते हैं। इसकी ताकत और संरचना को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी भी दुश्मन के लिए इसे फतह करना आसान नहीं रहा होगा।

मेवाड़ के गौरव और शौर्य का प्रतीक
कुंभलगढ़ को ‘मेवाड़ की आंख’ भी कहा जाता है। यह न सिर्फ एक युद्धकालीन किला था, बल्कि कई राजाओं के लिए आश्रयस्थली भी बना। इतिहास गवाह है कि जब बनबीर ने मेवाड़ की गद्दी पर कब्जा कर लिया था, तब युवा उदयसिंह को इसी किले में छिपाया गया था। बाद में वही बालक महाराणा उदयसिंह बना, जिसने उदयपुर की स्थापना की।

कुंभलगढ़ ही वह जगह है जहां महाराणा प्रताप का जन्म हुआ- वो वीर योद्धा जिन्होंने मुगलों से कभी हार नहीं मानी। इस वजह से भी यह किला न सिर्फ एक स्थापत्य चमत्कार है, बल्कि राजस्थानी अस्मिता और साहस का प्रतीक भी है।

कला और आस्था का संगम
कुंभलगढ़ केवल एक सैन्य किला नहीं था। बता दें, यहां 60 से ज्यादा हिंदू और जैन मंदिर भी बनाए गए हैं। इससे पता चलता है कि यह स्थान सिर्फ राजनैतिक और सैन्य गतिविधियों का ही नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक समृद्धि का भी केंद्र रहा है।

किले के भीतर बने मंदिरों की नक्काशी और वास्तुकला आज भी यह दर्शाती है कि किस तरह धर्म, कला और सत्ता एक-दूसरे के पूरक थे। खास बात यह है कि हर मंदिर का निर्माण एक खास मकसद से किया गया था- कहीं ध्यान के लिए, कहीं शौर्य की पूजा के लिए।

हर कोना बयां करता है अलग कहानी
किले के विभिन्न हिस्सों के अलग-अलग नाम हैं। जैसे:

‘टूट्या का होड़ा’, जो एक पैदल चलने का रास्ता है।
‘दानीवाह’, जो किले के पूर्वी हिस्से की ओर जाता है।
‘हीराबाड़ी’, पश्चिम की ओर एक और रास्ता है, जहां से कुछ दूरी पर ‘कुंवर पृथ्वीराज की छतरी’ स्थित है। यह वही पृथ्वीराज हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे और जिनके घोड़े का नाम था ‘साहन’।

आज भी शान से खड़ा है कुंभलगढ़ किला
आज जब आप कुंभलगढ़ किले में एंट्री लेते हैं, तो हर पत्थर, हर दीवार और हर द्वार इतिहास की गहराइयों से कुछ कहता हुआ प्रतीत होता है। यह किला केवल एक इमारत नहीं, बल्कि संस्कृति, साहस और शौर्य का जीता जागता उदाहरण है।

यही कारण है कि इसे यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सकें कि भारत के पास भी एक ऐसी दीवार है, जो महज पत्थरों से नहीं, बल्कि गौरव और इतिहास से बनी है।

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