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असक्या पर्व के साथ बूढ़ी दीपावली महोत्सव शुरू, जानिए महत्व

 टिहरी जिले के जौनपुर, उत्तरकाशी के गोडर खाटर, रवाईं घाटी और देहरादून के जौनसार बाबर में बूढ़ी दीपावली, बग्वाली या पुरानी दीपावली के नाम से मनाया जाने वाला जनजातीय पर्व असक्या पर्व के साथ शुरू हो गया है। मुख्य पकोड़िया पर्व आज मनाया जा रहा है जबकि 19 नवंबर को भिरूड़ी बराज मनाया जाएगा।

दीपावली के ठीक 30 दिनों के बाद प्रदेश के जौनपुर, रवाईं और जौनसार बावर क्षेत्र में मनाए जाने वाली पहाडों की मुख्य बूढ़ी दीपावली असक्या पर्व के साथ शुरू हो गई है। इसमें पहाड़ी उत्पाद झंगोरे से बने असके का दही के साथ सेवन किया जाता है। इस दीपावली का मुख्य पकोड़िया पर्व आज मनाया जा रहा है। इसमें उड़द की दाल के पकोड़े बनाए जाते हैं।

रात को इस दीपावली की मुख्य होलियात खेली जाती है, जिसमें गांव के सभी बूढ़े, जवान, बच्चे नए वस्त्र पहनकर होलियात के लिए जाते हैं। होलियात के बाद गांव की पांडव चौंरी में देर रात तक गांव के लोग नाचते-गाते हैं।

19 नवंबर को भिरूड़ी बराज में दोपहर को दीपावली की अंतिम होलियात खेली जाएगी। होलियात के बाद पांडव चौंरी में अखरोट की भिरूड़ी फेंकते है, जिसको दीपावली के प्रसाद के रूप में दिया जाता हैं। बराज की संध्या को कई गावों में भाड का आयोजन होता है, जिसको देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन के रूप में दर्शाया जाता है। इसमें बाबई घास से बनी विशाल रस्सी का प्रयोग किया जाता है।

इसकी खासियत यह है कि रस्सी बनाने के लिए बाबई घास को इसी दिन काटकर बनाया जाता है। मान्यता के अनुसार, रस्सी बनाने के बाद स्नान करवाकर विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। कोटी, खरसोन, मौगी, भटोली, सैंजी, बंगसील आदि गावों की भांड विशेष रूप से प्रसिद्ध है जिनको देखने के लिए दूरदराज से लोग आते हैं।

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