उत्तराखंड

देहरादून: कुदरत की मार और इंसानी लापरवाही से मुसीबत बन रहा भूधंसाव

राज्य में भूस्खलन, बाढ़ के साथ भू-धंसाव की समस्या मानसून में देखने को मिली है। वैज्ञानिकों के अनुसार भूधंसाव एक बड़ा कारण तेज और कम समय में अधिक बारिश रहा है। वहीं, आंकड़े भी तस्दीक कर रहे हैं कि राज्य में बारिश बढ़ रही है। इसके साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों की निकासी के रास्ते प्रभावित होने से समस्या बढ़ रही है।

इस साल चमोली के नंदानगर से लेकर टिहरी, रुद्रप्रयाग, मसूरी क्षेत्र समेत अन्य जगहों पर भू-धंसाव की घटनाएं हुई है। वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नमिता वैदेश्वरन कहती हैं कि भू-धंसाव का एक बड़ा कारण बारिश है। कम समय में तेज और अधिक बारिश से समस्या बढ़ी है। बारिश के कारण मिट्टी की होल्डिंग कैपिसिटी कम हो गई है इससे समस्या बढ़ी है। साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों के निकासी के मार्ग होते थे, वह मानवीय गतिविधियों के कारण प्रभावित हुए हैं। पानी को रास्ता चाहिए, ऐसे में उसको रास्ता नहीं मिलने पर नुकसान कर रहा है।

प्राकृतिक जल स्रोतों का रास्ता बंद नहीं होना चाहिए

श्रीदेव सुमन विवि के प्रो. डीसी गोस्वामी कहते हैं कि पूरा हिमालय जोन संवेदनशील है। यह निर्माण की प्रक्रिया में है। भू-धंसाव कई कारण है, इसमें अधिक बारिश होना भी है। इसके अलावा क्षेत्र की भार सहने की क्षमता है, उसे भी देखा जाना चाहिए। पहाड़ों में कई मंजिला भवन बन रहे हैं। इसके अलावा प्राकृतिक जल स्रोत होते थे, उनको लेकर भी ध्यान देने की जरूरत है।

पहाड़ों में जहां से पानी आता है, उस पर ध्यान देने की जरूरत है। पहले तो वहां पर कोई निर्माण नहीं करना चाहिए। अगर किसी कारणवश किया भी जा रहा है तो उसके लिए सुरक्षात्मक निर्माण कार्य करते हुए पानी के निकासी का रास्ता देना चाहिए। प्राकृतिक जल स्रोतों के पास किसी भी हाल में भवन निर्माण नहीं करना चाहिए। सड़क निर्माण के दौरान मानकों का पालन नहीं होता है, इससे भी समस्या बढ़ती है।

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