उत्तर प्रदेश

मां मोरी क्यों मैं डरना, तेरी वरगा मैं नहीं मरना’

 दिसंबर 2012 की रात निर्भया उन छह दरिंदों के सामने मरी नहीं, वह लड़ी थी। वह चुपचाप अस्पताल में नहीं थी, वह व्यवस्था और संस्थाओं से सवाल कर रही थी। वह छह बलात्कारी अकेले नहीं थे, निर्भया जानती थी, इस सिस्टम में लड़कियों को कमजोर मानने और बनाने वाला हर एक व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार था। स्वांग सूफी रॉक बैंड ने जब अपनी प्रस्तुति ‘मां मोरी क्यों मैं डरना, तेरी वरगा मैं नहीं मरना…’ पेश किया तो इस गीत के जरिये अनेक सवाल निर्भया ने किए।

जागरण संवादी में रविवार की रात आखिरी प्रस्तुति में स्वांग बैंड ने कव्वाली, सूफी गीत और शायरी को मौसिकी में ढाल कर इस रात को यादगार बना दिया। ‘आरक्षण’ और ‘सत्याग्रह’ जैसी फिल्मों के लेखक रवींद्र इस ग्रुप के अगुआ रहे। उनका साथ दिया कंपोजर और गायक रोहित शर्मा ने, जिन्होंने ‘अनार कली ऑफ आरा’ समेत कई अन्य मशहूर फिल्मों के संगीत दिया है। मनुज तबले पर और गिटार पर विक्रम थे, जबकि रिंकू ने गिटार के साथ गीतों में भी जबरदस्त सहयोग दिया।

आगाज हल्के म्यूजिक में इन शब्दों के साथ हुआ ‘..चंद रोज और मेरी जान, फकत चंद और रोज, जुल्म की छांव में दम लेने दे, मजबूर हैं हम, लेकिन अब जुल्म की मियाद थोड़ी है, इक जरा फरियाद के दिन थोड़े हैं, हमको रहना है तो यूहीं नहीं रहना है।’ स्वांग ग्रुप की खासियत है विरोध के गीत लिखने की। उन्होंने अगली प्रस्तुति दी, जो कि प्रजातंत्र की विसंगतियों को दर्शाती है। इसमें कहा गया ‘..नोच नोच के खाऊं रे जो सरकार बन जाऊं..।’

फैज अहमद फैज के शेर पर आधारित अपना अगला गीत उन्होंने पेश किया, जिसको लेकर पहले कुछ विवाद भी हुए हैं। गीत के बोल थे ‘..बेकारियों के आवारा कुत्ते, ये गलियों के आवारा कुत्ते, बस ट्रक और ट्रामों में बेशुमार कुत्ते, जो बिगड़े तो एक दूसरे को लड़ा दो..।’ इस गीत में ग्रुप ने अपना संगीत देने के अलावा अफ्रीकन कवि हारलेम का फ्यूजन भी पेश किया, जिसको सुन कर दर्शकों ने खासा आनंद लिया।

इसके बाद में इस शाम की सबसे खास पेशकश प्रस्तुत की गई। 2012 के निर्भया कांड के ऊपर अपना खास गीत उन्होंने प्रस्तुत किया, जिसमें एक लड़की अपनी मां के जरिये पूरे सिस्टम से सवाल करती है। कहती है ‘..मां मोरी क्यों मैं डरना, तेरी वरगा मैं नहीं मरना, बाबा जब तुम कहते थे बेटा जल्दी घर आना, क्यों तुम कहते थे, अस्मत प्यारी तो घर में बैठ, ये काम तो नेता तेरा था, इनको दाना डाला था, उन छह में शामिल तुम भी थे..।’

रोहित शर्मा ने इसके बाद खुद की कंपोज की गई फिल्म अनार कली ऑफ आरा की ठुमरी पेश की, जिसके बोल थे ‘..वह नाम जिया बेगानी, बड़ी ढीठ रे प्रीत तिहारी, जगाए नयना सारी।’ ग्रुप के सदस्यों ने बाबा बुल्ले शाह की कव्वालियों को अपने संगीत के जरिये एक नया रूप दिया है। इसकी एक नजीर पेश करते हुए उन्होंने गाया ‘..तेरे इश्क नचाया कर थइया थइया, क्या चीज है मोहब्बत आयत ये शिफा है, ये रोग नहीं रोगों की दवा है।’

सूफी कव्वाली में आमतौर से संत से मांग किस्मत बदलने की होती है मगर अमरोहा की दरगाह के दादा शाह विलायत को समर्पित कव्वाली में उन्होंने कहा ‘..बंद मुट्ठी की तकदीर क्या है, हाथ खोले तो वह दुआ है, ऐ हम बदम हर कदम मेरे, काबिल बना..।’ इस कव्वाली के साथ ही इस शानदार शाम का समापन हुआ।

टूटे तार के गिटार को बजा कर बटोरीं तालियां: ग्रुप के गिटार वादक विक्रम के गिटार का तार पहली प्रस्तुति के दौरान ही टूट गया, जिसकी वजह से दूसरी प्रस्तुति में कुछ विलंब हुआ। मगर, जैसे तैसे तार को दोबारा सेट कर के विक्रम ने शानदार गिटार बजाया, जिसको सुन कर मौजूद लोग वंस मोर, वंस मोर का नारा लगाने लगे। सुनने वालों की फरमाइश पर विक्रम ने दोबारा गिटार की बीट बजा कर सुनाई।

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