उत्तर प्रदेश

सोनभद्र से मिर्जापुर- चंदौली तक फैली है शैलचित्रों की शृंखला

बीएचयू की टीम के सर्वे में सोनभद्र से मिर्जापुर-चंदौली के साथ ही बिहार के कैमूर जिले तक शैलचित्रों की एक बड़ी शृंखला सामने आई है। कई जगहों पर लघु पाषाणीय उपकरण भी पाए गए हैं। 3600 ईसा पूर्व से लेकर 25 लाख वर्ष पूर्व तक का इतिहास संजोये प्रागैतिहासिक काल की गुफाओं-भित्ति चित्रों की चमक समय की मार ने भले धुंधली कर दी है लेकिन गहराई से शोध किया जाए तो पाषाण युग से जुड़ीं अहम जानकारियां सामने आ सकती हैं।

सोनभद्र के पंचमुखी, कैमूर वन्य जीव सेंच्युरी से जुड़े महुअरिया, घोरावल क्षेत्र के मुक्खा फाल आदि जगहों पर पहले से शैलचित्रों की मौजूदगी प्राचीन इतिहास के अध्ययनकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। अब नए अध्ययन-सर्वे में जिले के चतरा-नगवां ब्लॉक के साथ मिर्जापुर जिले के कुछ हिस्सों के अलावा चंदौली के नौगढ़ तहसील क्षेत्र में बड़ी मात्रा में गुफा-भित्ति चित्रों की मौजूदगी पाई गई है।

अलग-अलग शैली में निर्मित इन गुफा चित्रों को प्राचीन सभ्यता के विभिन्न आयामों (पाषाण युग, कांस्य युग और लौह युग) से जोड़कर देखा जा रहा है। इन चित्रों में प्राचीन सभ्यता, संस्कृति की झलक मिलने के दावे तो किए ही गए हैं। इन्हें प्राचीन काल में बस्तियों की बसावट, पगडंडियों से जुड़े रूट, तत्कालीन लोक कला-संस्कृति की स्थिति से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

यहां पाई गईं गुफाएं और भित्तिचित्र
चंदौली के गहिजन बाबा पहाड़ी में दो, औरवाटांड़ में दो, मंगरही के बघवा मांद-खैरहवा पहाड़ पर तीन, पंडी में छह, कुंडइली दरी में एक, कुआंधार में दो, चितावड़ कुंड में एक, दंता दुअरा में एक, दूधगड़वा मांद में एक, रामनगरी दरी में एक, टिकुरिया (कुड़वादरी) में एक, मझराती में दो, हनुमान दरी में दो, कछुआ कुंड दरी में दो, टपका दरी में एक, चिलबिले दरी में एक, ताला में एक, तनुई (लखनिया दरी) में एक, नासोपुर में एक, अर्जी कलां कपिसा पहाड़ पर एक, कौडीहार खास कपिसा पहाड़ पर एक, घूरहूपुर में पांच भित्तिचित्र मिले हैं। मिर्जापुर के गोबरदहा में एक, राजापुर (झरी नर्सरी) रीठा बाबा पहाड़ी पर एक शैलचित्र मिला है। सोनभद्र के हड़हिइयामान-रमना पहाड़ी में एक, लोहरा में एक, सुकृत में एक, पड़वनियां में तीन, डोमखरी में तीन, धरमापुर में एक, कंडाकोट में नौ, बहुआर में दो, बजरही पहाड़ी पर चार, नगवां ब्लाक क्षेत्र में छह शैलचित्र पाए गए हैं।

कैमूर-बिहार में भालू बूड़न घाट के पास भैंसमरवा पहाड़ पर एक, आम पहाड़ी पर दो, लेखनिया पहाड़ी पर तीन तथा मगरदह में चार, ताला में एक, सरवनदाग में एक, डीहा में एक, रतनपुरा में दो, खड़ौली में एक शैलचित्र मिले हैं।

दो साल पहले बीएचयू की टीम ने किया था अध्ययन
वर्ष 2022-2023 में बीएचयू के प्राचीन इतिहास विभाग के तीन प्रोफेसरों की अगुवाई वाली टीम ने सोनभद्र के साथ चंदौली और मिर्जापुर के एक बड़े हिस्से का पुरातात्विक सर्वे किया था। इस साल मई में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक चंदौली में 23 नई जगहों पर 34, मिर्जापुर में दो नई जगहों पर दो और सोनभद्र में 10 नई जगहों पर 31 और बिहार के कैमूर में नौ नई जगहों पर 13 शैलचित्रों की मौजूदगी पाई गई है।

इन शैलियों के भित्तिचित्र पाए गए
प्रो. कमलाराम बिंद, डॉ. प्रभाकर उपाध्याय और स्वतंत्र कुमार सिंह के निर्देशन में हुए सर्वेक्षण में सोनभद्र में पाए गए शैलचित्रों में मानव जीवन के साथ ही पशु, वन्य और जल जीवों तक की संरचना मिली है। खोड़वा के कटहरवा शैलाश्रय में एक्सरे तकनीक से मानव और पशुओं के चित्र बने पाए गए हैं। हिरण के साथ मगरमच्छ की भी आकृति बनी मिली है। दावा किया गया है कि यहां पाए गए शैलचित्र ताम्र पाषाणिक संस्कृति से संबंधित हैं। सेहिमनवां शैलचित्र का जुड़ाव लौह युग से होने का दावा किया गया है। टड़िया यानी खड़े पत्थरों पर बने शैलचित्रों का अंकन ज्यादातर मानव अधिवास से जुड़ा मिला है। दुआरी में तरह-तरह के पुष्पचित्र, धर्मदासपुर में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि के साथ हिरण की आकृति और बहेरा में दुर्लभ माने जाने वाले हाथों के छाप पाए गए हैं। पानी के स्रोत, त्रिकोणीय-तीलीनुमा शैली में मानव शरीर का अंकन पाया गया है।

क्या बोले अधिकारी
जो शैलचित्र पहले से संरक्षित हैं, उनकी देखरेख के लिए जरूरी इंतजाम किए जा रहे हैं। नए शैलचित्रों की जानकारी लेकर उनके संरक्षण का प्रयास किया जाएगा। 

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