उत्तर प्रदेश

यमुना ने दिखाया रौद्र रूप, तब समझ आया खतरा

डूब क्षेत्र में भ्रष्टाचार की नींव पर खड़े हुए अवैध निर्माण के यमुना की बाढ़ में डूबने के बाद अफसरों की नींद टूट गई। अब इन अवैध निर्माणों का कच्चा चिट्ठा जानने के लिए ड्रोन मैपिंग कराने का निर्णय लिया गया है। जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने जलभराव वाली काॅलोनियाें और अपार्टमेंट का ड्रोन से सर्वे कराने के निर्देश भी जारी कर दिए हैं।

राजस्व विभाग ने ड्रोन से घरौनी बनाई थीं। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी का ड्रोन सर्वे कराया था। उसी तर्ज पर अब यमुना डूब क्षेत्र में हुए अवैध निर्माण का सर्वे होगा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर पहले ही यमुना का डूब क्षेत्र निर्धारित हो चुका है। 1978 की बाढ़ के आधार पर कोऑर्डिनेट्स तय हुए हैं। इनके आधार पर मुड्डियां गाढ़ने के लिए सिंचाई विभाग ने शासन को प्रस्ताव भेजा है। केंद्रीय जल आयोग पर एनजीटी के 50 हजार रुपये जुर्माना लगाने के बाद डूब क्षेत्र के कोऑर्डिनेट्स जारी हुए थे।

सोते रहे जिम्मेदार, बन गई अवैध कॉलोनियां
यमुना डूब क्षेत्र में अवैध कब्जों का खेल चला। जिम्मेदार सोते रहे। अवैध कॉलोनियां बन गई। सिक्कों की खनक से अफसर आंखें मूंदे रहे। सिंचाई विभाग, आगरा विकास प्राधिकरण, स्वामी नगर पंचायत और राजस्व विभाग के गठजोड़ से बिल्डरों ने अवैध निर्माण खड़े कर दिए। एडीए और सिंचाई विभाग के इंजीनियर अवैध निर्माणों के ध्वस्तीकरण के नाम पर खानापूर्ति करते रहे।

एनजीटी के आदेश पर 2016 में ध्वस्त हुए थे निर्माण
दयालबाग में अमर विहार, तनिष्क राजश्री से लेकर आस-पास डूब क्षेत्र में बहुमंजिला इमारत खड़ी हैं। कॉलोनियां बन गई हैं। 2016 में एनजीटी के आदेश पर एक दर्जन से अधिक अवैध निर्माण ध्वस्त हुए थे। लेकिन, बाकी अवैध निर्माण सत्ता के संरक्षण और अधिकारियों के भ्रष्टाचार से बच गए। नौ साल बाद भी बचे हुए अवैध निर्माणों का ध्वस्तीकरण नहीं हुआ। सस्ते प्लॉट व फ्लैट के लालच में यहां लोग मेहनत की गाढ़ी कमाई गंवा रहे हैं। कभी भी इन अवैध निर्माणों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

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