व्यापार

स्टॉक करने वालों की खरीदारी से सोना 550 रुपये बढ़कर 99120 रुपये पर पहुंचा, चांदी स्थिर

स्टॉकिस्ट्स की ताजा खरीदारी से मंगलवार को दिल्ली में सोने के का भाव 550 रुपये बढ़कर 99,120 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। अखिल भारतीय सर्राफा संघ ने इसकी पुष्टि की है। सोमवार को 99.9 प्रतिशत शुद्धता वाला सोना 98,570 रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव पर बंद हुआ था। 99.5 प्रतिशत शुद्धता वाले सोने का भाव 500 रुपए बढ़कर 98,600 रुपए प्रति 10 ग्राम (सभी करों सहित) हो गया।

दूसरी ओर, मंगलवार को चांदी की कीमतें लगातार तीसरे सत्र में 1,04,800 रुपये प्रति किलोग्राम (सभी करों सहित) पर रहीं। इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ। वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना हाजिर 11.42 डॉलर या 0.34 प्रतिशत घटकर 3,325.09 डॉलर प्रति औंस रह गया।

सर्राफा बाजार के जानकारों के अनुसार, “व्यापार युद्ध के फिर से शुरू होने की आशंका बढ़ने के कारण सोने में कल की गिरावट की भरपाई हो गई और मंगलवार को इसमें तेजी दर्ज की गई। धारणा में यह बदलाव राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से जापान और दक्षिण कोरिया से आयातित वस्तुओं पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की योजना की घोषणा के बाद आया है, जो 1 अगस्त से प्रभावी होगा।”

एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ विश्लेषक (कमोडिटीज) सौमिल गांधी ने कहा, “यह निर्णय अमेरिकी व्यापार नीतियों में सुधार के लिए राष्ट्रपति ट्रंप की व्यापक पहल को दर्शाता है। टैरिफ विवाद ने बाजारों में लगातार अनिश्चितता पैदा की है। यह अनिश्चितता सुरक्षित निवेश वाली परिसंपत्ति सोने के लिए अनुकूल वातावरण का काम करती है।” अबान्स फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी चिंतन मेहता ने कहा कि निवेशक अमेरिकी टैरिफ प्रकरण, फेड की टिप्पणी और ताजा मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं, ये सभी चीजें सोने की कीमतों आने वाले समय में प्रभावित करेंगी।

एंजेल वन के वरिष्ठ तकनीकी विश्लेषक- कमोडिटीज और करेंसीज, तेजस शिग्रेकर के अनुसार, सोना एक मौलिक हेज एसेट बना हुआ है। बाजार के खिलाड़ी 2025 के जुलाई महीने तक कमजोर होते अमेरिकी आर्थिक आंकड़ों, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में चल रही मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं। शिग्रेकर ने कहा, “जून के बाद से डॉलर कमजोर हुआ है, जिससे ग्राहकों के लिए सोने का आकर्षण बढ़ गया है। केंद्रीय बैंकों की खरीद, खासकर चीन और भारत जैसे विकासशील देशों की खरीद से भी दीर्घकालिक मांग बनी हुई है।”

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