उत्तराखंड

भारत-चीन सीमा की सड़क बह गई थी, देना होगा 71 लाख मुआवजा, आयोग ने 12 साल बाद दिया आदेश

भारी बारिश में भारत-चीन सीमा पर बन रही एक सड़क बहने के मामले में 71 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश हुआ है। सड़क निर्माण करने वाली कंपनी ने प्राकृतिक आपदा की आशंका से बीमा करवाया था, लेकिन सड़क बहने के बाद बीमा कंपनी ने भी पल्ला झाड़ लिया। यह कहकर दावा खारिज कर दिया कि बारिश से होने वाला नुकसान पॉलिसी में कवर नहीं होता।

इस मामले में 12 साल बाद निर्माण कंपनी को राहत और बीमा कंपनी को बड़ा झटका लगा है। राज्य उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को सेवा में कोताही का दोषी माना है। आयोग की अध्यक्ष कुमकुम रानी ने कहा कि बीमा कंपनी ने यदि सभी तरह के जोखिमों के लिए प्रीमियम नहीं लिया था तो यह बीमा कंपनी की गलती थी। इसके लिए शिकायतकर्ता को मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता।

शिकायतकर्ता कंपनी मैसर्स डीएसएम (जेवी) को केंद्र सरकार से उत्तराखंड में न्यू सोबला से सेला टेडांग तक भारत-तिब्बत सीमा पुलिस सड़क निर्माण का ठेका मिला था। पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्र में निर्माण कार्य के कारण प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कवर करने वाली ऑल रिस्क इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी।

इसके लिए राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड को छह लाख 46 हजार रुपये का भारी भरकम प्रीमियम चुकाया। यह पॉलिसी 18 सितंबर 2012 से 17 सितंबर 2013 तक वैध थी। 16 जून 2013 को भारी बारिश और भूस्खलन के कारण निर्माण स्थल पर काम पूरी तरह से बह गया, जिससे कंपनी ने 80 लाख रुपये से अधिक के नुकसान का दावा किया। ढाई साल बाद, फरवरी 2016 में बीमा कंपनी ने दावा खारिज कर दिया। वजह बताई कि नुकसान बाढ़ और भूस्खलन से हुआ, जो उनकी पॉलिसी में शामिल नहीं था। शिकायतकर्ता कंपनी ने इसके खिलाफ राज्य उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया।

आयोग ने 71 लाख से अधिक के मुआवजे के ऊपर शिकायत दर्ज करने की तारीख (6 फरवरी 2018) से वास्तविक भुगतान की तारीख तक छह फीसदी प्रति वर्ष के साधारण ब्याज और 25 हजार रुपये मुकदमा खर्च भी देने का आदेश दिया है। पूरा भुगतान एक महीने के भीतर करना होगा।

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