राजनीति

ममता बनर्जी के आरोपों पर हिमंत बिस्व सरमा का पलटवार

असम में राज्य सरकार सुरक्षा और संस्कृति की रक्षा के नाम पर कार्रवाई कर रही है, वहीं बंगाल में इसे राजनीतिक भेदभाव के तौर पर देखा जा रहा है। घुसपैठ समेत तमाम मुद्दों को लेकर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच जुबानी जंग भी शुरू हो गई है

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। यह विवाद असम में कथित घुसपैठ, भाषायी पहचान और एनआरसी जैसे मुद्दों को लेकर है। शनिवार को सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए हिमंत बिस्व सरमा ने ममता बनर्जी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘हम अपने ही लोगों से नहीं लड़ रहे हैं। हमारी लड़ाई सीमा पार से हो रही घुसपैठ के खिलाफ है, जो असम की जनसंख्या संतुलन को बिगाड़ रही है। कई जिलों में हिंदू अब अपने ही घर में अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं।’

‘सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बाहरी आक्रमण माना है’
उन्होंने यह भी कहा कि, ‘यह कोई राजनीतिक बयान नहीं, हकीकत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बाहरी आक्रमण माना है। लेकिन जब हम अपनी संस्कृति और पहचान की रक्षा करने की कोशिश करते हैं, तो कुछ लोग इसे राजनीति बना देते हैं।’ सीएम सरमा ने कहा कि असम में सभी भाषाएं और समुदाय साथ रहते हैं, लेकिन सीमाओं और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा जरूरी है।

सीएम ममता बनर्जी का वार
इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, ‘बांग्ला भारत की दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और असम में भी इसका बड़ा स्थान है। लेकिन भाजपा असम में बंगाली भाषियों को निशाना बना रही है। यह पूरी तरह से असंवैधानिक और विभाजनकारी है।’ उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार असम में बांग्लाभाषियों को डराने-धमकाने की कोशिश कर रही है, उनकी भाषा और पहचान को खत्म कर रही है। सीएम ममता ने कहा कि वह हर उस नागरिक के साथ हैं जो अपनी भाषा, संस्कृति और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहा है।

कैसे शुरू हुआ पूरा विवाद?
यह विवाद उस समय और बढ़ गया जब तृणमूल कांग्रेस की की ट्रेड यूनियन आईएनटीटीयूसी ने सिलीगुड़ी में एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा शासित राज्यों में बंगाली बोलने वाले लोगों को परेशान किया जा रहा है, और उन्हें माइग्रेंट बताकर हटाया जा रहा है। इस मामले में ममता बनर्जी ने संकेत दिया है कि वो इस मुद्दे पर बंगाल विधानसभा में बहस कर सकती हैं और असम सरकार के खिलाफ सख्त रवैया अपनाएंगी। वहीं असम सरकार ने साफ कर दिया है कि वह अपने “संविधानिक अधिकार” के तहत घुसपैठ के खिलाफ कार्रवाई जारी रखेगी।

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